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REASON FOR ECONOMIC RECESSION

Know what"s recession & slow down & it's reason


*मंदी को अंग्रेजी में Recession* कहते हैं. 

*आजकल जो देखने को मिल रहा है, वह Slowdown है*, 

इसको *हिंदी में नरमी या सुस्ती कहते* हैं. 

*मंदी* का मतलब *जीडीपी का आकार कम होना* है। *नरमी* का मतलब *जीडीपी के बढ़ने की रफ्तार का कम हो जाना* है. 

मंदी मने *गोइंग डाउन,
नरमी मने *स्लोइंग डाउन.* 

 

मतलब कि यदि *जीडीपी की वृद्धि दर शून्य से नीचे मने नकारात्मक हो जाए तो उसको आर्थिक मंदी कहते* हैं. और, यदि *जीडीपी की वृद्धि की दर पहले की अपेक्षा कम होती है तो उसे नरमी या सुस्ती कहते* हैं. 

अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, भारत से लगभग दस गुणा बढ़ा. कई साल बाद *अमेरिका की आर्थिक वृद्धि दर 2018 में तीन प्रतिशत पर पहुंची.* ट्रम्प इसे लेकर अपनी पीठ खूब थपथपाये भी थे. चूँकि अमेरिका वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र है, 

अक्सर ही *आर्थिक नरमी और मंदी का सूत्रधार वही होता है*. पिछली आर्थिक मंदी भी वहीं से शुरू हुई थी. *इसबार भी शुरुआत उसने ही की है.* 

वैश्वीकरण के दर्शन वाले विश्व को एक गाँव बताते हैं. 

तकनीकी शब्दों में इसे एक ऐसी इकाई समझिये जो आपस में गुत्थमगुत्था है. 

*एक बीमार होगा तो दूसरे और तीसरे-चौथे पर इसका असर पड़ेगा ही.* 

अभी दुनिया भर में फ़ैल रहे संरक्षणवाद खासकर अमेरिका और चीन के व्यापर युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर डाला है. अमेरिका की आर्थिक वृद्धि दर *जून तिमाही में दो प्रतिशत से नीचे चली* गयी.

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इसके बाद चीन, दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, भारत की तुलना में करीब तीन गुणा बड़ी. 

चीन की आर्थिक वृद्धि दर पिछली तिमाही में 6 प्रतिशत रही और इस वित्त वर्ष में 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है. *यह 27 साल का निचला स्तर है*. आने वाले समय में इसके गिरकर 5 प्रतिशत पर पहुँच जाने का अनुमान है. 

 जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. *जर्मनी की आर्थिक वृद्धि दर इस साल जनवरी तिमाही में 0.9 प्रतिशत रही, जून तिमाही में यह 0.4 प्रतिशत पर आ गयी, इस तिमाही में इसके 0.1 प्रतिशत पर और अगली तिमाही में शून्य से नीचे चले जाने का अनुमान है*. 

*ब्रिटेन शून्य से नीचे जा चुका है, -0.2 प्रतिशत पर*. 

*फ्रांस 0.2 प्रतिशत* पर आ गया है और अगली ही तिमाही में इसके भी शून्य से नीचे जाने का अनुमान है. 

 जापान की बात. अंतिम *आखिरी मंदी के बाद जापान की आर्थिक वृद्धि दर कभी भी दो प्रतिशत के ऊपर नहीं गयी*. अभी फिलहाल 0.4 प्रतिशत पर आ गयी है और इसी वित्त वर्ष में शून्य से नीचे चले जाने का अनुमान है. 

इससे इतर भारत की बात अब. *पिछली तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत रही* और यह दशक भर बाद हुआ कि हमारे बढ़ने की रफ़्तार चीन से कम हो गयी. हालाँकि इस पूरे वित्त वर्ष में हमारी आर्थिक वृद्धि दर 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो अगले वित्त वर्ष में बढ़कर (इस शब्द पर गौर करियेगा) *7.2 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है.* 

(आंकड़ें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के हैं). 

*आर्थिक मंदी और नरमी को अर्थशास्त्र में दो भाग में बांटा* गया है. एक *यू(U) शेप्ड और दूसरा वी(V) शेप्ड.* 

यू शेप्ड मने मंदी या नरमी जो भी है वह दीर्घकालिक है. 

वी शेप्ड मने मंदी या नरमी जो भी है, क्षणिक है. 

भारत के संदर्भ में गौर करें और सबसे पहले पैरा को पढ़ लेन तो यह स्पष्ट है कि मंदी के आसार दूर-दूर तक नहीं हैं ।. नरमी आ चुकी है, यह तथ्य है । 
बाद में दिए गए आंकड़ों को देखेंगे तो पता चलेगा कि यह *नरमी वी शेप्ड है, मने क्षणिक है. एक या बमुश्किल दो तिमाही इसका असर रहेगा । 

कॉरपोरेट कैसे नरमी और मंदी का भय दिखाकर दोहन करता है, यह समझिये. 

हाल में तीन सेक्टर की ख़बरें खूब चमकीं और इन ख़बरों को पढ़कर देश में रातों-रात देश में आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों की फ़ौज पैदा हो गयी. ये तीन क्षेत्र हैं...वाहन, बिस्कुट और चड्ढी . 

मंदी का हौवा बना रहे लोग निहित स्वार्थ में और कुंठा में ऐसा कर रहे हैं. मंदी को लेकर सचेत रहना चाहिये और सरकार को नरमी से ही यथाशीघ्र बाहर निकल जाने के लिए कदम उठाने चाहिये । 

सरकार ने अपना काम शुरू कर ही दिया है.

Know more about it


Disclaimer: 
This is entirely my friend  Kuldeep Sharma's Post posted on Facebook which I have reposted here without any editing.

You can visit his site Tikdambaji to read his thoughts

I may or may not agree with his point of view, but I respect his thoughts too. 






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