जनवरी की एक सर्द सुबह थी, अमेरिका के वाशिंगटन डीसी का मेट्रो स्टेशन।
एक आदमी वहां करीब घंटा भर तक वायलिन बजाता रहा। इस दौरान लगभग 2000 लोग वहां से गुज़रे, अधिकतर लोग अपने काम से जा रहे थे।
जब उस व्यक्ति ने वायलिन बजाना शुरू किया... उसके तीन मिनट बाद एक अधेड़ आदमी का ध्यान उसकी तरफ गया। उसकी चाल धीमी हुई वह कुछ पल उसके पास रुका और फिर जल्दी से निकल गया।
जब उस व्यक्ति ने वायलिन बजाना शुरू किया... उसके तीन मिनट बाद एक अधेड़ आदमी का ध्यान उसकी तरफ गया। उसकी चाल धीमी हुई वह कुछ पल उसके पास रुका और फिर जल्दी से निकल गया।
4 मिनट बाद : वायलिन वादक को पहला सिक्का मिला। एक महिला ने उसकी टोपी में सिक्का डाला और बिना रुके चलती बनी।
6 मिनट बाद : एक युवक दीवार के सहारे टिककर उसे सुनता रहा, फिर उसने घड़ी पर नज़र डाली और चलता बना।
10 मिनट बाद : एक 3 वर्षीय बालक वहां रुक गया, पर जल्दी में दिख रही उसकी माँ उसे खींचते हुए वहां से ले गयी। माँ के साथ लगभग घिसटते हुए चल रहा बच्चा मुड़-मुड़कर वायलिन वादक को देख रहा था। ऐसा ही कई बच्चों ने किया और हर बच्चे के अभिभावक उसे घसीटते हुए ही ले गये।
45 मिनट बाद : वह लगातार बजा रहा था...अब तक केवल छः लोग ही रुके थे और उन्होंने भी कुछ देर ही उसे सुना। लगभग 20 लोगों ने सिक्का उछाला पर रुके बगैर अपनी सामान्य चाल में चलते रहे। उस आदमी को कुल मिलाकर 32 डॉलर मिले।
1 घंटे बाद उसने अपना वादन बंद किया, फिर से शांति छा गयी। इस बदलाव पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया।
किसी ने वादक की तारीफ नहीं की।
किसी भी व्यक्ति ने उसे नहीं पहचाना !
वह थे विश्व के महान वायलिन वादकों में से एक, जोशुआ बेल ! जोशुआ 1.6 करोड़ रुपए की अपनी वायलिन से इतिहास की सबसे कठिन धुन बजा रहे थे। महज दो दिन पहले ही उन्होंने बोस्टन शहर में मंचीय प्रस्तुति दी थी, जहाँ प्रवेश टिकिटों का औसत मुल्य 100 डॉलर (लगभग 7500) रुपए था।
यह बिलकुल सच्ची घटना है।
जोशुआ बेल प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘WASHINGTON POST’ द्वारा ग्रहणबोध और समझ को लेकर किये गए एक सामाजिक प्रयोग का हिस्सा बने थे। इस प्रयोग का उद्देश्य यह पता लगाना था की *किसी सार्वजानिक जगह पर किसी अटपटे समय में हम खास चीजों और बातों पर कितना ध्यान देते हैं ? क्या हम सुन्दरता या अच्छाई की सराहना करते हैं ? क्या हम आम अवसरों पर प्रतिभा की पहचान कर पाते हैं ?*
अब आप कुछ पल बैठिये और सोचिये, आपने ज़िंदगी की इतनी तेज़ी से भागदौड़ में कितनी खुबसूरत चीज़ें miss कर दी… *ज़िन्दगी की भागदौड़ में कुछ खोया है तो वो है ज़िन्दगी जीने का तरीका।
*आइये आज एक बार फिर ज़िंदगी को जियें,*
*बच्चा बनकर दोस्तों के संग हंसकर चाय पियें।*
*बच्चा बनकर दोस्तों के संग हंसकर चाय पियें।*
DISCLAIMER
This is copy-paste post from my friend Kuldeep Sharma's post on Facebook
I may or may not agree with the post but wanted to share it so that people should introspect themselves.
For more Kuldeep Sharma's post visit his blog Bekhouf
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