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WHY USE OF TECHNOLOGY IN TEACHING DURING CORONA PANDEMIC IS A CONFLICT

Use of technology in teaching during corona pandemic

कोरोना काल में हम सब बहुत खाली हो गए हैं। 

भौतिक रूप से खाली होने को हमने भरने के अनेक तरीके ढूंढ लिए हैं लेकिन दिमागी खालीपन का क्या किया जाए। यह खालीपन कभी कोई खुराफात पैदा करता है, कभी अनावश्यक विवाद। 

बुजुर्ग जो कहते आये हैं, खाली दिमाग शैतान का घर। 



मेरे लिए ये बातचीत ही अजीब सी है कि इस विकट खाली समय के सदुपयोग की कोशिशों पर ही कोई सवाल उठाए, उनकी सराहना की जगह निंदा करे। 

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आज घर पर बैठे कुछ लोग कोरी बातें कर रहे हैं, सवाल उठा रहे हैं, उन लोगो/ स्कूलों पर जो आज के इस हालात में बच्चों को तकनीक के माध्यम से पढ़ाई कराने, कुछ एक्टिविटीज कराने और कुछ क्रिएटिव कराने का प्रयास कर रहे हैं। 

कुछ विद्वान लोग ऐसे होते हैं जिन्हें किसी भी गतिविधि का /किसी भी काम के लिए मार्गदर्शन नहीं करना, केवल उसकी आलोचना करनी है। 

यदि स्कूल इन दिनों न पढ़ाते, बच्चों के लिए कुछ ना करते तो ये ही लोग शायद ये कह रहे होते की "देखो स्कूलों को तो बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं। आज कितनी तकनीक है, जब तक लॉकडाउन नहीं खुलता, बच्चों को घर बैठे ही तकनीक से ही पढ़ा देते।" अब पढ़ा रहे हैं तो कह रहे कि लोगों को जान बचाने की चिंता है और आपको पढ़ाई की पड़ी है। 

 एक वाजिब सवाल तो बनता है कि क्या इस बुरे समय में पूरी तरह हताश होकर बैठे चिंता करते रहें या इस समय को शांतचित होकर पढ़ने पढ़ाने में लगाकर गुज़ारें। 

ये बुरा वक़्त तो एक दिन गुज़र ही जायेगा लेकिन हमने इसे रो रो कर हताशा, निंदा, कलह में गुजारा या शांत भाव से, यह हमेशा बड़ा अनुभव रहेगा। 

इन दिनों कुछ ऐसी भी पोस्ट सामने आई, जिसमें इस बात की जमकर आलोचना की गई थी कि कोरोना काल में बच्चों को क्यों पढ़ाया जा रहा है। 
क्यों भाई, इतनी भी दुनिया कहां रुकी है, क्या काम नहीं हो रहा है, और किस प्राथमिकता के सीने पर कदम रख कर या गला घोटकर पढ़ाया जा रहा है। 

फीस के बारे मे शिक्षा विभाग और सरकार द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन सभी स्कूलों द्वारा किया जा रहा है, जो नही करेगा, उसे सरकार देखेगी। 

बहरहाल मुद्दा बचा ये कि इस वक्त क्यों पढ़ाया जा रहा है, क्यों भाई, क्या गलत है, पढ़ाने में, अगर इस माहौल में थोड़ा अपनी मनः स्थिति को बच्चे और उनके पेरेंट्स थोड़ा पढ़ाई, थोड़ी क्रिएटिविटी थोड़ी एक्टिविटी से पूरे दिन में थोड़ी देर कोरोना को भूलकर कुछ सार्थक कर लें तो बुरा क्या है। 

हमारे सामने कोई ऐसे अभिभावक नहीं आये जिन्हें इस बात से कोई एतराज हो कि इस लॉकडाउन पीरियड में बच्चों को तकनीक से पढ़ाई कराई जा रही है बल्कि लोग खुश हैं कि उन्हें कुछ तो चेंज करने को मिला, उनके बच्चे जो मोबाइल चला रहे थे, कुछ मोबाइल से भी बोर हो चुके थे, उन्हें कुछ करने को तो मिला। 




वास्तव में किसी ने सही कहा है कि जब आप कुछ अच्छा करने लगते हो तो बहुत लोग बिना वजह भी विरोध करने लगते हैं। 

यह नकारत्मकता हमारे अपने व्यक्तित्व को और सामाजिक प्रयासों को नुकसान पहुंचाती है। 

तो मेरी गुजारिश है, मेरे विद्वान अग्रजों से कि कुछ अच्छा हो रहा हो, कृपया सहयोग करें या न करें, कृपया उसे होने तो दें। 

याद रहे, वक़्त गुज़र जाता है, बात हमेशा बाकी रह जाती है, जो अच्छे समय में भी बुरी तरह चुभती है। 











निहित सुधाकर।




Disclaimer
It's posted by Mr Nihit Sudhakar 

I may or may not agree with his view but I always respect the thoughts of freedom of speech.

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