अरे ओ..... टीवी चैनल वालों।
मैं टीवी पर खबरें और अन्य प्रोग्राम देखने के लिये तीन-चार सौ रुपये खर्च करता हूं।
मुझे न्यूज़ चैनलों पर देश विदेश की खबरें चाहिए।
मुझे पूर्वाग्रह से ग्रस्त और मनमर्जी से थोपने वाले पक्षपातपूर्ण खबरें नहीं देखना है।
इन न्यूज चैनलों के संपादकों और एंकरों ने करोडों दर्शकों को क्या पागल समझ रखा है?
मैं ही नहीं। करोड़ों टीवी दर्शकों को इन न्यूज़ चैनलों की मूर्खतापूर्ण हरकतों पर क्रोध आ रहा है।
पिछले छः महीने से टीवी चैनलों ने एक नया रूख अख्तियार कर लिया है। एक घटना, एक विषय पर चौबीसों घंटे एक ही खबर?
देश में कोरोना क्या फैला। दो-ढाई महिने सारी चैनलों पर केवल एक ही कोरोना की खबर।कोरोना से ज्यादा कोरोना की खबरों ने लोगों को बीमार कर डाला।
भारत-चीन सीमा पर विवाद हुआ तो चौबीसों घंटे सारी चैनलों पर केवल गलवान ही गलवान।
अब सुशांत बाबू आ गये। उनके साथ कंगना चली आईं। सुबह से रात तक केवल सुशांत, रिया। इस घटना को लेकर सारी टीवी चैनलों में प्रतिस्पर्धा कि कौन सुशांत की कथित आत्महत्या की गुत्थी सुलझा सकता है। फिर इसे लेकर दिन भर घटनाओं को खींचना और मूर्खतापूर्ण, हास्यास्पद रिपोर्टिंग कवरेज। पूरे दिन इसी मुद्दे पर पेनलिस्टों की तू तू मै मै।लडाई-झगडे। गाली-गुप्ता।
चैनलों ने सारी गरिमा, सभ्यता और संवेदना ही खो दी है।
अरे यार ये पूरे देश में क्या लगा रखा है।
नेशनल न्यूज चैनलों ने तो मूर्खता की पराकाष्ठा कर डाली है।
टीवी न्यूज़ वालो को याद दिला दूं कि आप जिसे टीआरपी वाले दर्शक समझ रहे हैं। वे केवल दर्शक नहीं है, वे आपकी चैनल के सब्सक्राइब हैं। ग्राहक हैं।
आपने घटिया, पक्षपातपूर्ण, असामाजिक, अश्लील और देश के खिलाफ समाचारों का प्रसारण किया तो मुझे यह अधिकार है कि मैं आपकी चैनल को या कनेक्शन को बंद कर दूं।
क्योंकि अब आपका प्रसारण देश विदेश की खबरें और जानकारी देने वाला नहीं बल्कि पूर्वाग्रह से ग्रस्त और ऊबाऊ समाचार देने वाला चैनल हो चला है।
न्यूज चैनलों के संपादक और एंकर जनता पर अपनी मनमर्जी थोपने लगे हैं। देश में घर घर टीवी होने का यह अर्थ नहीं कि आप टीवी दर्शकों का मानसिक शोषण करें और दिन भर एक ही एक समाचार दिखाकर उसे प्रताड़ित करें।
न्यूज चैनलों के संपादक और एंकरों टीवी दर्शकों को कठपुतली समझ लिया है। वे अपने केबिन बैठकर थय कर लेते हैं कि आज देश को क्या दिखाना है। कहां किसे नचाना है। किसे गालियां पडवाना है। बस यहीं से चल पडती न्यूज चैनलों की रेल। दिन भर एक ही राग। आलाप।
इनके साथ वे नेटकेबल कंपनियां भी दोषी हैं जो घर घर टीवी प्रसारण सेवा दे रहे हैं।
अरे भैय्या बचाओ। इन टीवी चैनलों से।
तुम लाखों लोगों से पैसा किस बात का ले रहे हो? टीवी चैनलों से लोगों को मानसिक रूप से प्रताड़ित कराने का? टीवी नेटवर्क कंपनियां, न्यूज चैनल जो परोस देंगी वह आप दर्शकों के घर भेज दोगे? ऐसा है तो दर्शक क्यों आपका ग्राहक बनें? आपका कनेक्शन क्यों नहीं निकाल फेंके?
जितने दिनों से सुशांत की मौत का मातम टीवी चैनलों पर मनाया जा रहा है। छाती कूटी जा रही है। उतने दिनों में देश और विदेशों में सैकडों घटनाएं घट गईं हैं। जिनमें आम आदमी की रूचि थी। कहां हैं वे समाचार?
भारतीय सेना की चीनियों से फिर भिडंत हुई। एक लाईन की खबर। देश की जीडीपी रसातल में गयी। एक लाईन की खबर। भारत रत्न देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नहीं रहे एक लाईन की खबर। ऐसी सैकडों खबरों को दबाकर खा जाने वाले न्यूज़ चैनलों को देखा जाए?
यदि ऐसा ही चलता रहा तो महेश भट्ट और आलिया भट्ट की तरह टीवी दर्शक न्यूज़ चैनलों का बहिष्कार करना शुरू कर देंगे।
साभार Ashutosh Bajpai
DISCLAIMER
This post is from Ashutosh Bajpai on Facebook and was shared on my friend's post.
I too was feeling the same for the last few months hence I thought to share although I want to add that almost all news channels are free to air and they make money from advertisers for presenting bullshit to us.
I will appreciate your thoughts also to share here.
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