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सनातन विज्ञान

 

सनातन विज्ञान


प्रश्न = सनातन धर्म के ग्रंथों में लिखी गई हर बात सच होने के बावजूद विज्ञान क्यों खंडन करता है ? 

 विज्ञान क्या है, वो तो अभी कुछ 100 - 200 सालों से प्रगति करना शुरू किया है. अभी तो उसे बहुत कुछ जानना, बहुत कुछ खोजना बाँकी है.

अभी तो विज्ञान को कई नए आविष्कार करने हैं, कई सारे सिद्धांत प्रतिपादित करने हैं.तो यह जरूरी नहीं की जो चीज़ विज्ञान साबित नहीं कर पाए, वो गलत है. हो सकता है की आने वाले समय में विज्ञान इस बात को मानने ले.

मैं अपने बचपन की एक कहानी को साझा करना चाहूँगा.

मैं कोई कक्षा सातवीं आठवीं का छात्र रहा होऊंगा. एक दिन मैं बिस्तर पर बैठा हुआ था और मेरे पैर हवा में लटक रहे थे और मैं उन्हें झुला रहा था. मेरी नानी ने कहा की "ऐसे पैर मत हिलाओ."

मेरा क्रांतिकारी बाल मन तुरंत सवाल कर बैठा. "क्यों?" 

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नानी बहस करने के मूड में नहीं थी.उन्होंने सीधे एक लाइन में कहा "दोष होता है." 

मैं आज का जागरूक किशोर ऐसे कैसे मान लेता. मैंने तुरंत पूछा "क्या दोष होता है 

नानी वैसे तो मुझे समझा दिया करती थी बड़े प्यार से, लेकिन शायद उनका मूड उस वक़्त वैसे नहीं रहा होगा या फिर उन्होंने मुझे उस वक़्त समझाना सही नहीं समझा होगा. वो थोड़े गुस्से में बोली "जितना बोली उतना सुनो. इस तरह पैर मत हिलाओ."

मैं बड़ा ही सभ्य बच्चा था. मैंने पैर हिलाना बंद कर दिया और सवाल पूछना भी. 

लेकिन मेरे मन में यह सवाल बना ही रहा और इसका उत्तर खोजना भी जारी ही रहा. 


लेकिन किसी के भी पास इसका ऐसा उत्तर नहीं था, जो मुझे शांत कर सके समय के साथ मेरे चिंतन में परिवर्तन आते रहे, लेकिन एक बात तय थी की फिर कभी भी मैंने उस तरह पैर नहीं हिलाया और अगर कोई मेरे सामने पैर हिलाता भी तो मैं उसे मना कर देता और मैं भी उसे यही बोलता की "दोष होता है." और अगर वह सवाल करता की "क्या दोष होता है?" तो मैं यही बोलता की "बड़े बूढ़े अगर कोई बात कह गए हैं, तो उसका कोई मतलब तो होगा ही. तो इस तरह पैर मत हिलाओ.

जब मैं बड़ा हुआ तो अभी कुछ दिन पहले मैंने एक खबर सुना की पश्चिम के किसी प्रख्यात विश्वविधायल में यह शोध किया गया है की पैर को बेवजह हिलाते रहने से दिल के दौरा होने की संभावना बढ़ जाती है. 

जिस दिन समाचार पत्र में मैंने यह खबर पढ़ी,मेरी आँखों के सामने मेरे बचपन का वह दृश्य घूम गया मुझे समझ आ गया की नानी मुझे क्यों मना कर रही थी, और उनके पास मुझे समझाने के लिए जवाब क्यों नहीं था. या तो उन्हें भी पता नहीं होगा या फिर पता होगा तो भी उनके कहने पर मैं मानता नहीं उनकी बात, मुझे लगता की नानी ऐसे ही कुछ भी बोल दे रही है. 

लेकिन मेरे समझ में ये जरूर आ गया की उनके बड़े बूढों ने भी उन्हें यही बताया होगा की नुकसान होता है, या बीमार होता है आदमी, जो धीरे धीरे अनेक लोगों के मुख से और समय से बिगड़ता गया होगा और बात "दोष होता है" पर आकर रुक गयी. 

क्यों की किसी के पास उस बात को साबित करने का कोई साधन नहीं होता था. 

तो मेरे कहने का यह मतलब है की अगर कोई चीज़ साबित नहीं हो सकती, या विज्ञान के अनुसार वह बात सच नहीं है, इसका ये बिलकुल मतलब नहीं है की वह बात गलत है

DISCLAIMER 

This post is not mine. This was shared by Pandit Vishal Shrotriy @vishal_shrotriy on Twitter. 

I liked the post and thought that it should reach to more viewers hence I have posted here.

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